जीवन
उथले पानी में
बीता है
जीवन सारा
और अक्सर
हमने बात की है
गोताखोरी की
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ज़िंदगी – 1
पक्षियों का कलरव
भँवरों का गुंजार
फूलों का खिलना
हवा का चलना
है ज़िंदगी
यह अर्थ नहीं रखती
महज काटने में
इसे तो जीया जाता है
चहककर
महककर
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ज़िंदगी – 2
ज़िंदगी की परतों के
भीतर ही कहीं
छुपी रहती ज़िंदगी
जैसे छुपा हो
हारिल कोई
हरे पत्तों के बीच
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7 टिप्पणियां:
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना गुरूवार १२ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुंदर।
बहुत सुंदर ,बधाई हो
जिंदगी- सच जो क़रीब से देखा गया।
जिंदगी1- जिंदगी को जियो खिल के, चहक के।
जिंदगी2- हमारे हर पल में बिखरी पड़ी है जीने की आशा।
सुंदर रचना।
नई रचना- सर्वोपरि?
वाह!!!
बहुत सुन्दर सार्थक...
वाह!
बेहद उम्दा।
वाह , दिलबाग जी ! सुंदर अभिव्यक्ति !!!!!
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