बुधवार, सितंबर 16, 2020

मुहब्बत के ज़ख़्मों का, पूछो न हिसाब मुझसे

 
मुहब्बत के ज़ख़्मों का, पूछो न हिसाब मुझसे

रुक न पाएगा, फिर यादों का सैलाब मुझसे ।


पहले छीना था हमसे, प्यार जिस ज़ालिम ने

वो सितमगर, अब छीन रहा है शराब मुझसे ।


नक़ाबपोशी है बुरी, मानता हूँ मैं इसे, मगर

उतारा न गया, ख़ामोशियों का नक़ाब मुझसे ।


जिस दिन हुआ, फ़ैसला मेरी क़िस्मत का

उस दिन पूछे थे उसने, सवाल बेहिसाब मुझसे 


बेवफ़ा हूँ मैं, ये सारी दुनिया कहती है

दिया न गया, कोई मुनासिब जवाब मुझसे ।


अँधेरे को समझना होगा नसीब अपना 

नाराज़ है 'विर्क', प्यार का आफ़ताब मुझसे ।


दिलबागसिंह विर्क 



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