बुधवार, अगस्त 28, 2019

दोस्तों से हाथ धो बैठोगे, जब आज़माओगे

कभी रोओगे यार, कभी बहुत पछताओगे 
पत्थर दिलों से जब तुम दिल लगाओगे। 

किसी-न-किसी मोड़ पर सामना हो ही जाता है 
दर्द को सहना सीख लो, इससे बच न पाओगे। 

जो हुआ, अच्छा हुआ, कहकर भुला दो सब कुछ 
बीती बातें याद करके, नए दर्द को बुलाओगे। 

दोस्त बनाए रखना, भले कहने भर को ही 
दोस्तों से हाथ धो बैठोगे, जब आज़माओगे। 

सब देते हैं दग़ा, सब निकलते हैं मतलबी 
किस-किस को याद रखोगे, किसे भुलाओगे। 

ठोकर खाकर न संभलना, समझदारी तो नहीं 
कब तक और कितनी बार ‘विर्क’ धोखा खाओगे।

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, अगस्त 21, 2019

मेरे दिल में सुलगते सवालों को हवा न दे

हर सफ़र में कामयाब होने की दुआ न दे 
अंगारों से खेल जाऊँ, इतना हौसला न दे।

या तो दुश्मन बनके दुश्मनी निभा या फिर
दोस्त बना है तो दोस्ती निभा, यूँ दग़ा न दे। 

कोहराम मचा देंगे, हो जाने दे दफ़न इन्हें 
मेरे दिल में सुलगते सवालों को हवा न दे। 

हक़ीक़त सदा रखनी है आँखों के सामने 
कुछ ज़ख़्म हरे रखने हैं, इनकी दवा न दे। 

चिराग़ाँ जलाते रहना बस फ़र्ज़ है हमारा 
वो बात और है कि इन्हें जलने ख़ुदा न दे। 

आशियाने से जुड़ने की कोशिशें करता रहूँगा  
वक़्त की आँधी ‘विर्क’ जब तक मुझे उड़ा न दे। 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, अगस्त 07, 2019

मैं को भी हम कहते हैं

जिन ज़ख़्मों को ज़माने में इश्क़ के ज़ख़्म कहते हैं 
कसक के हद से बढ़ने को उसका मरहम कहते हैं। 

यही रीत है नज़रों से खेल खेलने वालों की 
दिल के बदले दर्द देने वाले को सनम कहते हैं। 

पतझड़ को बहार बना देने का दमखम है जिसमें 
उस सदाबहार मौसम को प्यार का मौसम कहते हैं। 

उस मुक़ाम पर हैं, यहाँ जीना पड़े यादों के सहारे 
हम इसे ख़ुशी कहते हैं, लोग इसे ग़म कहते हैं। 

क्या औक़ात है आदमी की ख़ुदा से टकराने की 
जितने भी किए सितम वक़्त ने, उनको कम कहते हैं। 

इश्क़ का मुक़ाम पाकर ‘विर्क’ ये हाल हुआ है मेरा 
वो इस क़द्र शामिल मुझमें कि मैं को भी हम कहते हैं।

दिलबागसिंह विर्क 
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