रविवार, अगस्त 26, 2012

स्वार्थी दुनिया ( हाइकु )

दिखावा बढ़ा 
धार्मिकता गायब
ये किस धर्म ?
तोड़ लेती है
टहनियों से फूल 
स्वार्थी दुनिया ।
गांधारी होना 
महानता कम है
 मूर्खता ज्यादा ।

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शनिवार, अगस्त 18, 2012

अगज़ल - 44

      अपनी हस्ती को गम के चंगुल से आजाद करने का 
      काश ! हम सीख लेते हुनर खुद को शाद करने का ।


      अंजाम की बात तो बहारों पर मुनस्सर है लेकिन 
      इरादा तो हो वीरान चमन को आबाद करने का ।

      इन्हें कुछ भी मतलब नहीं होता किन्हीं मुद्दों से 
      लोगों को तो बस मौका चाहिए फसाद करने का ।

      मुमकिन है हार के बाद हताशा हो जाए हावी 
      मगर हौंसला रखना , खुदा से फरियाद करने का ।

      बदलते मौसमों का इस पर कुछ असर नहीं होता 
      ढूंढ ही लेता है दिल बहाना , तुझे याद करने का ।

       ये तो हमारी ही खताएं थी विर्क जो भारी पड़ी 
       जमाने में कहाँ दम था हमें बर्बाद करने का ।

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रविवार, अगस्त 12, 2012

प्यार ( कविता )

तुझे पा लूं 
बाँहों में भरकर चूम लूं 
है यह तो वासना ।

प्यार कब चाहे 
कुछ पाना 
कुछ चाहना ।

जब तक तडप है 
प्यार जिन्दा है 
जब पा लिया 
प्यार मुरझा गया
 वासना में डूबकर ।

कुछ पाने की 
फ़िक्र क्यों है 
तडप का मजा लो 
यही तडप तो नाम है
प्यार का ।

दिलबाग विर्क 
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शुक्रवार, अगस्त 03, 2012

कैसी आजादी ? ( हाइकु )

इस युग में 
बढती नफरत
घटता प्यार ।

न गम स्थायी  
न ख़ुशी ही है स्थायी 
सब नश्वर  ।

चंद मिसालें 
क्या हो गई इससे 
नारी स्वतंत्र ।

आज भी वही 
लाठी वाले की भैंस 
कैसी आजादी ?

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