बुधवार, अक्टूबर 30, 2019

रूठ गए हैं सब नज़ारे, क्या करें ?

गर्दिश में हैं आजकल सितारे, क्या करें ?
हमें धोखा दे गए सब सहारे, क्या करें ?

कौन चाहता है, सबसे अलग-थलग पड़ना 
क़िस्मत ने कर दिया किनारे, क्या करें ?

ख़ुद से ज्यादा एतबार था हमें उन पर 
बेवफ़ा निकले दोस्त हमारे, क्या करें ?

लापरवाही थी, जीतने की न सोचना 
जब अपने हाथों ही हैं हारे, क्या करें ?

बहारें नसीब नहीं होती यहाँ सबको 
रूठ गए हैं सब नज़ारे, क्या करें ?

माना ‘विर्क’ उसने मेरा नहीं होना 
दिल बार-बार उसको पुकारे, क्या करें ?

6 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 31 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Anita Laguri "Anu" ने कहा…

. जी सोचने पर मजबूर कर दिया आपने ऐसा समय भी आता है जब हम सबसे अलग-थलग पड़ जाते हैं... बिल्कुल अकेले बहुत मुश्किल होता है,! उस दौर से गुजर ना दिल को छू गई आपकी ग़ज़ल!

Rohitas Ghorela ने कहा…

वाह बहुत ही सुंदर गजल।
हर शेर बेहतरीन।
जिंदगी से जुड़े हुए अनुभव।

यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता 

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब

मन की वीणा ने कहा…

वाह उम्दा/बेहतरीन प्रस्तुति।

बेनामी ने कहा…

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