बुधवार, नवंबर 28, 2018

दिल के दर्द की, किसने दवा दी है

क्यों बेमतलब शोलों को हवा दी है 
दिल के दर्द की, किसने दवा दी है। 

मैं दोस्त कहूँ उसे या फिर दुश्मन 
जिसने रातों की नींद उड़ा दी है। 

पसीजे पत्थर दिल, ये मुमकिन नहीं 
सुनाने को तो दास्तां मैंने सुना दी है। 

बड़ा महँगा पड़े है दस्तूर तोड़ना 
वफ़ा क्यों की, इसलिए सज़ा दी है। 

बाक़ी रहते हैं अक्सर ज़ख़्मों के निशां 
यूँ तो बीती हुई हर बात भुला दी है। 

अब हश्र जो भी, प्यार करके हमने 
ज़िंदगी ‘विर्क’ दांव पर लगा दी है। 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, नवंबर 21, 2018

दिल की ज़मीं होती कभी बंजर नहीं

मुहब्बत की राह चलें वो, जिन्हें कोई डर नहीं 
इसमें दुश्वारियाँ हैं बहुत, आसां ये सफ़र नहीं। 

ख़ुदा की हर नियामत मौजूद है यहाँ, मगर 
जन्नत लगे दुनिया, दिखते ऐसे मंज़र नहीं।

ख़ुद पर करो यक़ीं, यहाँ रहबर हैं वही लोग 
जो राह में हैं, मंज़िल की जिन्हें ख़बर नहीं। 

प्यार के बादल से वफ़ा का पानी तो बरसाओ 
देखना, दिल की ज़मीं होती कभी बंजर नहीं। 

उन्हें क्यों होगा दर्द किसी के उजड़ने का 
दहशतगर्दों का कोई मुल्क नहीं, घर नहीं। 

दौलत, शौहरत, ख़ुदग़र्ज़ी के पर्दे हटाओ 
दिल को दिल ही पाओगे, ‘विर्क’ पत्थर नहीं।

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, नवंबर 14, 2018

मेरे ख़्यालों, मेरे ख़्वाबों का मालिक तू है


कभी तुझे याद करता हूँ, कभी तुझे भूलता हूँ
ये न पूछ मुझसे, मैं कितना परेशां हुआ हूँ।

मेरे ख़्यालों, मेरे ख़्वाबों का मालिक तू है
मेरा वुजूद कहाँ है, अक्सर यही सोचता हूँ।

दीवानगी इसकी न जाने कितना रुसवा करेगी
मानता ही नहीं ये, इस दिल को बहुत रोकता हूँ।

लफ़्ज़ों के मानी बदल जाते हैं सुनते-सुनते
इसी डर से मैं कमोबेश ख़ामोश रहा हूँ ।

पत्थरों के पूजने पर मुझे कोई एतराज नहीं
मगर इससे पहले मैं संगतराश को पूजता हूँ।

दूरियाँ-नजदीकियाँ विर्ककोई मुद्दा नहीं होती
कल भी चाहता था तुझे, मैं आज भी चाहता हूँ।

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, नवंबर 07, 2018

प्यार को इबादत, महबूब को ख़ुदा कहें

क्यों हम इस ख़ूबसूरत ज़िंदगी को सज़ा कहें 
आओ प्यार को इबादत, महबूब को ख़ुदा कहें। 

मुझे मालूम नहीं, किस शै का नाम है वफ़ा
तूने जो भी किया, हम तो उसी को वफ़ा कहें। 

ख़ुद को मिटाना होता है प्यार पाने के लिए 
राहे-इश्क़ के बारे में बता और क्या कहें। 

मुश्किलों को देखकर माथे पर शिकन क्यों है 
हम ज़ख़्मों को इनायत, कसक को दवा कहें।

ख़ुद को बदलो, लोगों की फ़ितरत बदलेगी नहीं 
चलो ज़माने से मिली हर बद्दुआ को दुआ कहें। 

माना तुझसे ‘विर्क’ निभाई न गई क़समें मगर 
तुझे महबूब कहा था, अब कैसे बेवफ़ा कहें।

दिलबागसिंह विर्क 
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