रविवार, दिसंबर 28, 2014

ज़िंदगी दाँव पर लगानी है

ख़ूबसूरत बनी कहानी है
चढ़ गई आग-सी जवानी है ।

मैं जुबां पर यकीं न कर पाऊँ
बात दिल की उसे बतानी है ।
इश्क़ ही हल मिला मुझे इसका
ज़िन्दगी दाँव पर लगानी है ।

प्यार बरसे दुआ यही माँगी
नफ़रतों की अगन बुझानी है ।

आँख के सामने उसे पाया
जब किया इश्क़, याद आनी है ।

बस हमें सीखना इसे जीना
ज़िन्दगी तो बड़ी सुहानी है ।

मारना सीख लें अहम् अपना
' विर्क ' दीवार जो गिरानी है ।

दिलबाग विर्क
* * * * *

बुधवार, दिसंबर 24, 2014

इतिहास कभी नया बन जाता

ये दर्द अगर दवा बन जाता 
तो तू मेरा ख़ुदा बन जाता | 

है मन्दिर-मस्जिद के झगड़े
काश ! हर-सू मैकदा बन जाता | 
सीखा होता अगर वक्त से कुछ 
इतिहास कभी नया बन जाता | 

अगर वफ़ा की अहमियत होती 
फिर हर कोई बा-वफ़ा बन जाता | 

ख़ुश रहना अगर आसां होता तो 
यह सबका फलसफ़ा बन जाता | 

तुम ' विर्क ' हिम्मत न हारे होते 
तो एक दिन काफ़िला बन जाता |

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - हिन्द की ग़ज़लें
संपादक - देवेन्द्र नारायण दास 
प्रकाशन - मांडवी प्रकाशन, गाज़ियाबाद 
प्रकाशन वर्ष - 2008

मंगलवार, दिसंबर 16, 2014

वक्त खुद सीढ़ी बनेगा

आकाश देता है निमन्त्रण 
हर किसी को 
अपने पास आने का 
अगर सुन सको तो 

अँधेरे तहखानों से भी 
निकलते हैं रास्ते 
बाहर की दुनिया के 
अगर देख सको तो 

जागो
उठाओ कदम 
दृढ़ विश्वास के साथ 
बढ़ो मंज़िल की ओर
वक्त खुद सीढ़ी बनेगा 
तुम्हें शिखर तक ले जाने के लिए 

दिलबाग विर्क 
*****

बुधवार, दिसंबर 10, 2014

वो निशाना आज़माता रहा

वो बातें मुहब्बत की सुनाता रहा 
मैं बैठा अपने जख़्म सहलाता रहा । 
मुझे  गवारा न था सामने से हटना 
वो बार-बार निशाना आज़माता रहा  

कितनी जालिम होती है ये याद भी 
इसका वजूद मेरी नींद उड़ाता रहा । 

इस दिल का क्या करें, ये कहे उसे अपना 
जो शख्स जख़्म देकर मुस्कराता रहा । 

मझधार में उठे तूफां ने रोक लिया 
यूँ तो कश्तियों को किनारा बुलाता रहा । 

भूल हुई ' विर्क ' दिल की बातें मानकर 
ये हर बार कहीं-न-कहीं उलझाता रहा । 

दिलबाग विर्क 
*****
काव्य संकलन - काव्य गंगा 
संपादक - रविन्द्र शर्मा 
प्रकाशन - रवि प्रकाशन, बिजनौर ( उ.प्र. )

प्रकाशन वर्ष - 2008  

सोमवार, दिसंबर 01, 2014

अर्जुनों की मौत

कोई भी द्रोणाचार्य 
किसी को 
अर्जुन नहीं बना सकता 
हाँ 
कोई अर्जुन 
किसी द्रोणाचार्य को 
अमर जरूर कर सकता है 

यह प्रश्नचिह्न नहीं है 
किसी द्रोणाचार्य की योग्यता पर 
किसी द्रोणाचार्य के ज्ञान पर 
यह तो वास्तविकता है 
दरअसल 
ज्ञान देने की चीज़ नहीं 
ज्ञान लेने की चीज़ है 
अर्जुन बनाया नहीं जाता 
अर्जुन बना जाता है 
अगर बनाया जा सकता अर्जुन 
तो भीड़ होती अर्जुनों की 
आखिर कौरव भी 
सहपाठी थे अर्जुन के 

अर्जुन बनने के लिए 
जरूरी होता है 
अर्जुन का एकलव्य होना 
हर अर्जुन में 
एक एकलव्य होता है 
हर एकलव्य 
अर्जुन बन सकता है 
यह निर्भर करता है द्रोणाचार्य पर 
वो एकलव्य को 
अर्जुन बनने देता है 
या फिर अर्जुन को 
बना देता है एकलव्य 

आज कमी नहीं द्रोणाचार्यों की 
हाँ, एकलव्य आज नहीं मिलते 
आज अँगूठा नहीं कटवाते शिष्य 
आँख दिखाते हैं 
एकलव्यों का मर जाना 
अर्जुनों का मर जाना है । 

दिलबाग विर्क 
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