बुधवार, नवंबर 27, 2019

मैं अदना-सा इंसान हूँ

दुनिया के रस्मो-रिवाजों से अनजान हूँ 
मैं नाकाम हूँ तो इसलिए कि नादान हूँ। 

मैंने ख़ुद खरीदा है अपना चिड़चिड़ापन 
बेवफ़ाओं के बीच वफ़ा का क़द्रदान हूँ। 

छूटता ही नहीं वक़्त-बेवक़्त सच बोलना 
अपनी आदतों को लेकर बहुत परेशान हूँ।

हालात बदलने की तमन्ना तो है दिल में 
हुक्मरान ताक़तवर, मैं अदना-सा इंसान हूँ। 

बड़ा गहरा रिश्ता बन चुका है इनसे मेरा
आफ़तों का मेज़बान हूँ, कभी मेहमान हूँ। 

ख़ुशियों की बुलबुलें चहकती नहीं मेरे पास 
वक़्त की मार से ‘विर्क’ हो गया वीरान हूँ। 

दिलबागसिंह विर्क
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बुधवार, नवंबर 20, 2019

मैं ख़ुद को सोचना चाहता हूँ तन्हा रहकर

ज़मीर को मारकर, क्या करोगे ज़िंदा रहकर 
न कभी ख़ामोश रहना, ज़ुल्मो-सितम सहकर।

अक्सर कमजोरी बन जाती है सकूं की ख़्वाहिश 
ज़िंदगी का मज़ा लूटो, बहाव के उल्ट बहकर। 

महबूब को बुरा कहने की हिम्मत नहीं होती 
मैं ख़ुद अच्छा होना नहीं चाहता, झूठ कहकर। 

अपनी यादों को तुम बुला लेना अपने पास 
मैं ख़ुद को सोचना चाहता हूँ तन्हा रहकर। 

मुहब्बत इबादत है ‘विर्क’, बस इतना कहना है 
वक़्त ज़ाया नहीं करना चाहता कुछ और कहकर। 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, नवंबर 13, 2019

बड़ा महँगा पड़ा मुझे दोस्त बनाना

किसे अपना कहें हम, किसे बेगाना 
मुहब्बत का दुश्मन है सारा ज़माना। 

उसने सीखे नहीं इस दुनिया के हुनर 
चाँद को न आया अपना दाग़ छुपाना। 

मरहम की बजाए नमक छिड़का उसने 
जिस शख़्स को था मैंने हमदम माना।

गम ख़ुद-ब-ख़ुद दौड़े चले आए पास 
हमने चाहा जब भी ख़ुशी को बुलाना। 

देखो, दुश्मनी खरीद लाया हूँ मैं 
बड़ा महँगा पड़ा मुझे दोस्त बनाना। 

कमजोरियां, लापरवाहियाँ, बुराइयाँ 
हुई जगजाहिर, न आया मुझे छुपाना। 

मैं तो अक्सर हारा हूँ ‘विर्क’ इससे 
आसां नहीं, पागल दिल को समझाना। 

दिलबागसिंह विर्क 
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