क्यों बेमतलब शोलों को हवा दी है
दिल के दर्द की, किसने दवा दी है।
मैं दोस्त कहूँ उसे या फिर दुश्मन
जिसने रातों की नींद उड़ा दी है।
पसीजे पत्थर दिल, ये मुमकिन नहीं
सुनाने को तो दास्तां मैंने सुना दी है।
बड़ा महँगा पड़े है दस्तूर तोड़ना
वफ़ा क्यों की, इसलिए सज़ा दी है।
बाक़ी रहते हैं अक्सर ज़ख़्मों के निशां
यूँ तो बीती हुई हर बात भुला दी है।
अब हश्र जो भी, प्यार करके हमने
ज़िंदगी ‘विर्क’ दांव पर लगा दी है।
दिलबागसिंह विर्क
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12 टिप्पणियां:
बेहतरीन लाजबाब 👌
veerujan.blogspot.com
editplatter05.blogspot.com
खूब कही है ग़ज़ल बाग़ दिल -ए -वर्क ने ,
बात ये दीगर दिल की दुनिया में रख्खा क्या है ?
पसीजे पत्थर दिल, ये मुमकिन नहीं
सुनाने को तो दास्तां मैंने सुना दी है।
बड़ा महँगा पड़े है दस्तूर तोड़ना
वफ़ा क्यों की, इसलिए सज़ा दी है।
बाक़ी रहते हैं अक्सर ज़ख़्मों के निशां
यूँ तो बीती हुई हर बात भुला दी है।
अब हश्र जो भी, प्यार करके हमने
ज़िंदगी ‘विर्क’ दांव पर लगा दी है।
दिलबागसिंह विर्क
बहुत खूब।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (30-11-2018) को "धर्म रहा दम तोड़" (चर्चा अंक-3171) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार 30 नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ज़ज्बे और समर्पण का नाम मैरी कॉम : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
बहुत सुंदर रचना
सुंदर रचना |
वाह!!बहुत खूब!!
वाह उम्दा अस्आर ।
शानदार
https://ashokbamniya.blogspot.com
बाक़ी रहते हैं अक्सर ज़ख़्मों के निशां
यूँ तो बीती हुई हर बात भुला दी है।
बहुत ही लाजवाब....
वाह!!!
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