पा ही लेंगे मंजिल, कभी-न-कभी ।
खिलखिलाकर हंसो, जब भी वक्त मिले
यहाँ बड़ी मुश्किल से मिले है ख़ुशी ।
जी रहे हैं बेपरवाही से देखो
क्या रंग लाएगी ये आवारगी ।
प्यार का मुकाम भी दिलाती है गर
जलाती है दिल को दिल की लगी ।
या रब ! किसी को बेबस न बना
हर शै से बुरी है ये बेबसी ।
न वफा है पास और न ही गैरत
कितना खोखला है आज का आदमी ।
मुद्दे विर्क इससे और उलझ जाएंगे
हर मसले को न बनाओ मजहबी ।
दिलबाग विर्क
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2 टिप्पणियां:
वाह क्या बात! बहुत बेहतरीन!
न वफा है पास और न ही गैरत
कितना खोखला है आज का आदमी ।
...बहुत खूब! बहुत प्रभावी प्रस्तुति...
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