अब क्या कहेंगे आप, इस आदत को
ग़लतियाँ ख़ुद की,
कोसा क़िस्मत को।
तमाम चीजें बेलज़्ज़त
हो गई
पाया जिसने इश्क़ की
लज़्ज़त को।
ये एक दिन घर
तुम्हारा जलाएगी
दोस्तो, न हवा देना इस नफ़रत को।
अपने वुजूद से
फैलाएँ रौशनी
दाद देना जुगनुओं की
हिम्मत को।
पत्थर पिघलाने की
ताक़त है इसमें
आज़माना ‘विर्क’ कभी मुहब्बत को।
दिलबागसिंह विर्क
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