ऐसा नसीब हमारा क्यों नहीं ?
चाँद ज़मीं पर उतारा क्यों नहीं ?
दोस्त जब तमाशबीन बन गए तो
दुश्मनों ने हमें मारा क्यों नहीं ?
सदियों से हैं हमसफ़र दोनों
किनारे से मिले किनारा क्यों नहीं ?
यूँ ही खींच ली बीच में दीवारें
जो मेरा है, तुम्हारा क्यों नहीं ?
गुरूर था या एतबार न था
तूने मुझे पुकारा क्यों नहीं ?
न चूकना वरना फिर कहोगे
मौक़ा मिलता दोबारा क्यों नहीं ?
बहुत बुरे थे जब हम ‘विर्क’ फिर
ज़माने ने हमें दुत्कारा क्यों नहीं ?
दिलबागसिंह विर्क
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