बुधवार, जुलाई 17, 2019

ये इश्क़ भी है कैसी उलझन

ख़ुशियाँ उड़ें, जले यादों की आग में तन-मन 
समझ न आए, ये इश्क़ भी है कैसी उलझन 

न आने की बात वो ख़ुद कहकर गया है मुझसे 
फिर भी छोड़े न दिल मेरा, उम्मीद का दामन 

समझ न आए क्यों होता है बार-बार ऐसा 
तेरा जिक्र होते ही बढ़ जाए दिल की धड़कन

गम की मेजबानी करते-करते थक गया हूँ 
क्या करूँ, मेरा मुकद्दर ही है मेरा दुश्मन 

सितमगर ने सितम करना छोड़ा ही नहीं 
मैं खामोश रहा, कभी मजबूरन, कभी आदतन 

जो रुसवा करे ‘विर्क’ उसी को चाहता है दिल 
ये प्यार है, वफ़ा है, या है बस मेरा पागलपन 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, जुलाई 10, 2019

ये न सोच कि मैंने तुझे भुला दिया

ज़िंदगी के झंझटों ने उलझा दिया
ये न सोच कि मैंने तुझे भुला दिया। 

शुक्रिया कहूँ ख़ुदा को या गिला करूँ
दर्द दिया, दर्द सहने का हौसला दिया। 

तुझे बेवफ़ा कहना ठीक न होगा 
मेरे मुक़द्दर ने ही मुझे दग़ा दिया। 

ये हुनर सीखा है ख़ुश रहने के लिए 
हर कसक को आँसुओं में बहा दिया। 

हार मानना बुज़दिलों का काम है 
इतना तो मैंने ख़ुद को बता दिया। 

तेरी याद ही है ‘विर्क’ जिसने मुझे 
कभी रुला दिया तो कभी बहला दिया। 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, जुलाई 03, 2019

अपनों के इस शहर में हैं बेगाने बहुत।

यूँ तो हैं यहाँ पर चेहरे जाने-पहचाने बहुत
मगर अपनों के इस शहर में हैं बेगाने बहुत। 

कुछ हुनर न था हाथों में, कुछ लापरवाही थी
कुछ लगे, कुछ ज़ाया गए, लगाए थे निशाने बहुत।

अपनों की बेवफ़ाई ने हिम्मत तोड़ दी मेरी
मैं उठ न पाया फिर, आए थे लोग उठाने बहुत।

उनके ही दिल में फ़रेब था, तभी तो उन्होंने
मेरी सीधी-सी बात के निकाले माने बहुत।

हम भी ख़बर रखते हैं बदले हुए हालातों की
बनाने को तो उसने बनाए थे बहाने बहुत।

मुझे हर हाल में छोटा साबित करना था
हैसियत मापने के लिए बदले पैमाने बहुत।

सच बोलने की बुराई विर्कमुझी में तो नहीं
इस दुनिया में होंगे, मुझ जैसे दीवाने बहुत।

दिलबागसिंह विर्क 
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