कभी रोओगे यार, कभी बहुत पछताओगे
पत्थर दिलों से जब तुम दिल लगाओगे।
किसी-न-किसी मोड़ पर सामना हो ही जाता है
दर्द को सहना सीख लो, इससे बच न पाओगे।
जो हुआ, अच्छा हुआ, कहकर भुला दो सब कुछ
बीती बातें याद करके, नए दर्द को बुलाओगे।
दोस्त बनाए रखना, भले कहने भर को ही
दोस्तों से हाथ धो बैठोगे, जब आज़माओगे।
सब देते हैं दग़ा, सब निकलते हैं मतलबी
किस-किस को याद रखोगे, किसे भुलाओगे।
ठोकर खाकर न संभलना, समझदारी तो नहीं
कब तक और कितनी बार ‘विर्क’ धोखा खाओगे।
दिलबागसिंह विर्क
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