बुधवार, दिसंबर 25, 2019

आ दुनिया के ग़म, सिमट जा मेरे दामन में

ख़ुशी का बूटा उग सके हर घर के आँगन में 
आ दुनिया के ग़म, सिमट जा मेरे दामन में। 

बाल सफेद होने की बात करें जिसके लिए 
मैंने उतना महसूस कर लिया है बचपन में। 

क्या करें, कभी-कभी वो भी अपना नहीं होता 
जो शख़्स हो ख़्यालों में, ख़्वाबों में, धड़कन में।

दर्द होता है कैसा, ये बस उसी से पूछो 
लगी हो आग जिसके तन में, मन में। 

बारिशें भी कभी-कभी घर उजाड़ा करती हैं 
क्यों इंतज़ार है तुम्हें, क्या रखा है सावन में ?

दिल को मज़बूत करके फ़ैसला ले ही लेना 
जीना मुश्किल है ‘विर्क’ रास्तों की उलझन में। 

दिलबागसिंह विर्क 
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3 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-12-2019) को "शब्दों का मोल" (चर्चा अंक-3562)  पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 
    ….
    -अनीता लागुरी 'अनु '

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (01-01-2020) को   "नववर्ष 2020  की हार्दिक शुभकामनाएँ"    (चर्चा अंक-3567)    पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    नव वर्ष 2020 की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  

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  3. बहुत सुंदर पँक्तियाँ।

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यहाँ तक पहुंचने के लिए आभार | आपके शब्द मेरे लिए बहुमूल्य हैं | - दिलबाग विर्क