शनिवार, मार्च 31, 2012

जिन्दगी का सफर

खामोश 
तन्हा
चल रहा है
जिन्दगी का सफर ।

मौसम बदल रहे हैं
दिन बीत रहे हैं
वक्त गुजर रहा है
आहिस्ता-आहिस्ता ।

तय हो रही हैं 
बहुत-सी दूरियां
हासिल किए जा रहे हैं
नए-नए मुकाम
स्थापित हो रही हैं
नई-नई मान्यताएं
हर दिन , हर पल ।

यही जिन्दगी है
यही जिन्दगी का सफर है
जो चल रहा है
चुपके-चुपके
आहिस्ता-आहिस्ता ।

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रविवार, मार्च 25, 2012

चाहत

तुझे चाहा है
तेरी ही पूजा की है
इसके सिवा
न है तलाश कोई 
न है चाहत मेरी ।
तेरी तलाश
तू ही मेरी चाहत
मेरा जीवन
अर्पित है तुझको
तुझ बिन मैं नहीं ।

* * * * *

मंगलवार, मार्च 20, 2012

अग़ज़ल - 37

      ख़ुशी का न हुआ मेरी जिन्दगी में आगाज 
       गम मेरी खामोशी , गम ही मेरी आवाज ।
 
       दिल का दर्द दिखाना चाहता था मैं मगर
       दिखा पाया सिर्फ चंद आंसू , चंद अल्फाज ।


       क्या मजबूरियां थीं मालूम नहीं लेकिन
       दफन होकर रह गया सीने में एक राज ।


       खुद को टटोलने की जहमत भी उठा लेता
       काश ! जाने से पहले वो कह जाता दगाबाज ।


       दामन में भर दो जमाने भर की रुसवाइयां
       कब माँगा है मैंने किसी से कोई एजाज ।


       शायद यही एक कमी थी जीने के ढंग में
       उठा न पाया मैं विर्क इस जिन्दगी के नाज ।


* * * * *

शुक्रवार, मार्च 16, 2012

आशा

स्थायी नहीं 
दुःख का पतझड़ 
जब पड़ेंगी
आशाओं की फुहारें
खिलेगी जिन्दगी ।

निराशा विष
आशा जीवनामृत
दोनों विरोधी
चुनाव है तुम्हारा
चुन लेना जो चाहो ।

* *  

शनिवार, मार्च 10, 2012

अग़ज़ल - 36

            गम के इस दौर में थोड़ी ख़ुशी के लिए 
            लिखता हूँ जिन्दगी को जिन्दगी के लिए ।

            देखना खुदगर्जी हमारी हमें ले डूबेगी
            काश ! हम करते कुछ कभी किसी के लिए ।

            यूं हाथ पर हाथ धरे कब तक बैठोगे
            कुछ तो करना होगा आदमी के लिए ।

            आदमी के लहू से न बुझेगी प्यास
            मुहब्बत चाहिए दिल की तश्नगी के लिए ।

            हम न आह भर सके, न दुआ कर सके
            अब क्या कहा जाए, ऐसी बेबसी के लिए ।

           खस्ता हाल हो गई है यह जिन्दगी 
           आओ पुकारें  विर्क किसी नबी के लिए ।

* * * * *

सोमवार, मार्च 05, 2012

होली आई झूम के

होली का त्यौहार है, रंगों की बौछार ।
चुटकी एक गुलाल से, बढ़े आपसी प्यार ।।
बढ़े आपसी प्यार, फैलता भाईचारा ।
किया जब भी प्रयास, मिटा मनमुटाव सारा ।।
कहता सबसे ' विर्क ', गले मिलना हमजोली ।
मिटाकर भेदभाव, खेलना मिलकर होली ।।

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होली आई झूम के, डाल रहे सब रंग ।
शक्ल हुई बदशक्ल है, हुए सभी बदरंग ।।
हुए सभी बदरंग, अजब-सी मस्ती छाई ।
जश्न मनाते सभी, ख़ुशी है बेहद पाई ।।
भीग रही है रूह, भीगते कुरता-चोली
सब नर नारी ' विर्क ', खेलते मिलकर होली ।।

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दिलबागसिंह विर्क
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