बुधवार, अक्टूबर 24, 2012

रावण ( तांका )

बुत्त जलता 
दशहरे के दिन 
रावण नहीं 
रावण तो जिन्दा है 
हमारे ही भीतर ।
जिन्दा रखते 
भीतर का रावण 
और बाहर 
जलाते हैं पुतले 
धर भेष राम का 

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गुरुवार, अक्टूबर 18, 2012

बचपन

ये बचपन मासूम - सा , है ईश्वर का रूप 
प्यारी-सी मुस्कान है, ज्यों सर्दी की धूप ।
ज्यों सर्दी की धूप, सुहाती हमको हरपल 
लेती है मन मोह, सदा ही चितवन चंचल ।
लेकर इनको गोद, ख़ुशी से झूम उठे मन 
यही दुआ है विर्क , रहे हंसता ये बचपन ।

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बुधवार, अक्टूबर 10, 2012

अग़ज़ल - 46

ये दर्द मेरे दोस्तों की मेहरबानी का असर है 
अपनों ने रची हैं जो साजिशें, उनकी हमें खबर है ।

इसका नतीजा क्या होगा, यह तुम भी जानते हो 
पत्थर हैं उनके हाथ में, और मेरा कांच का घर है ।

जो बहुत शोर मचाया करते थे दोस्ती का अक्सर 
जब दुश्मनों को गिना, पाया उनका नाम भी उधर है ।

जिसके आसरे का था गरूर हमें, वो धोखा दे गया 
बरसात का मौसम शुरू होते ही, गया आशियाँ बिखर है।

मेरे मरे हुए सब अरमानों को तुम दफना देना कहीं 
मुझे अब फिर से इन सबके जिन्दा हो जाने का डर है ।

मैं समेट रहा हूँ विर्क खुद को अपने आगोश में 
महफिल की बात न करो, तन्हाई मेरा मुकद्दर है ।


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