मेरी हार की बात मुझे याद दिलाते रहे
लोग आकर पास मेरे कहकहे लगाते रहे ।
सोचा था, छोड़ दूँ उसकी याद में पीना
मगर यादों के साए मै-कदे तक लाते रहे ।
हमदर्दी जताने आए थे, उन्हें रोकता कैसे
वो इसी बहाने मेरे जख्मों को सहलाते रहे ।
टूटे दिल ने कहा, क्या है जिंदगी के सफ़र में
मगर चले हम भले ही कदम डगमगाते रहे ।
क्या करें, रूठना अब आदत हो गई है उनकी
आदत से मजबूर होकर हम जिन्हें मनाते रहे ।
शायद वो देखना चाहते हैं हौंसला मेरा
इसीलिए आशियाने पर बिजलियाँ गिराते रहे ।
जो थे ' विर्क ' कातिल मेरी खुशियों-अरमानों के
बेबसी देखो, हम उन्हीं को अपना बुलाते रहे ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - साधना सार्थक रहेगी
संपादक - जयसिंह अल्व्री
प्रकाशक - राहुल प्रकाशन, सिरुगुप्पा ( कर्नाटक )
प्रकाशन वर्ष - 2008
2 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
सुंदर रचना।
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