चाहत पर होना कुर्बान, प्रीत की रीत है
इस खेल का हाल अनोखा, हार तो जीत है ।
आँख शरारत करती है
और सज़ा दिल पाता है
देता मक़सद जीने का
पर पागल कहलाता है
पागल की सुन यार मेरे, यही तो मीत है
दौलत के अंबार लगे
ख़ुशी रही बनकर सपना
मतलब के हैं यार बहुत
नहीं मगर कोई अपना
हिसाब लगाओ तुम उसका, गई जो बीत है
दिल सोचे बस प्यारे को
सूखा हो चाहे सावन
देह से न जोड़ो इसको
प्यार सदा होता पावन
नाचो संग ताल मिलाकर, प्रेम संगीत है
© दिलबागसिंह विर्क
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6 टिप्पणियां:
बेहद खूबसूरत
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण...
सुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका इंतजार....
यहाँ की रीत ही निराली है !
बहुत बढ़िया प्रस्तुतीकरण.........
आपकी लिखी रचना वर्षान्त अंक "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 31 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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