कमान से छूटा तीर
बेध पाता है
एक ही छाती
जुबान से निकले शब्द
बेध सकते हैं
अनेक हृदय
तीर घायल करता है
बस एक बार
शब्द चुभते रहते हैं
उम्र भर
शब्दों की गूँज
सुनाई देती है
रह रहकर
बेशक
अर्थ का अनर्थ संभव है
सुनने वाले के द्वारा
मगर सतर्कता ज़रूरी है
शब्द-बाण छोड़ने से पहले
क्योंकि अनर्थ का धुआँ
उठेगा तभी
जब शब्दों की आग होगी ।
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दिलबागसिंह विर्क
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