बहुत विस्तृत है आसमान
उड़ सकती हैं सबकी पतंगें
साथ-साथ
पतंग सिर्फ़ उड़ानी नहीं होती
पतंग लूटनी भी होती है
मज़ा ही नहीं आता
केवल पतंग उड़ाने में
असली मज़ा तो है
दूसरों की पतंग लूटने में
वैसे बचती नहीं
किसी की भी पतंग
किसी की हम लूट लेते हैं
कोई हमारी लूट लेता है
दुःख तो होता है
अपनी पतंग लुटने का
मगर ये दुःख बौना है
उस ख़ुशी के सामने
जो मिलती है
दूसरों की पतंग लूटने पर
अपनी पतंग रहे न रहे
दूसरों की नहीं रहनी चाहिए
बड़ों की जीवन शैली
सीख लेते हैं बच्चे
पतंग के माध्यम से
बचपन में ही |
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दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई.
हाँ ! यही होता आ रहा है ..
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