आज तेरे पास नहीं
भले ही गुजारे लायक साधन
मौसमों की मार भी पड़ती है तुझ पर
गले तक कर्ज में भी डूबा है तू
मगर तू वंशज है ऊँचे खानदान का
पीढ़ियों पहले
तुम्हारी जाति के लोगों ने
किया था शोषण हमारी जाति का
अब उसकी सजा भुगतनी होगी तुझे
ये कहकर निगल गया
सामाजिकता का भेड़िया
आर्थिकता के मेमने को
अतीत का बदला ले लिया गया
वर्तमान से
और नींव रख दी गई भविष्य की
मेमना कभी भेड़िया था
भेड़िया कभी मेमना था
मेमने और भेड़िए बदलते रहे हैं
हर दौर में
मगर भेड़िए अतीत में भी जीते थे
वर्तमान में भी जीत रहे हैं
भविष्य में भी जीतेंगे...
दिलबागसिंह विर्क
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भले ही गुजारे लायक साधन
मौसमों की मार भी पड़ती है तुझ पर
गले तक कर्ज में भी डूबा है तू
मगर तू वंशज है ऊँचे खानदान का
पीढ़ियों पहले
तुम्हारी जाति के लोगों ने
किया था शोषण हमारी जाति का
अब उसकी सजा भुगतनी होगी तुझे
ये कहकर निगल गया
सामाजिकता का भेड़िया
आर्थिकता के मेमने को
अतीत का बदला ले लिया गया
वर्तमान से
और नींव रख दी गई भविष्य की
मेमना कभी भेड़िया था
भेड़िया कभी मेमना था
मेमने और भेड़िए बदलते रहे हैं
हर दौर में
मगर भेड़िए अतीत में भी जीते थे
वर्तमान में भी जीत रहे हैं
भविष्य में भी जीतेंगे...
दिलबागसिंह विर्क
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2 टिप्पणियां:
मेमना कभी भेड़िया था
भेड़िया कभी मेमना था
मेमने और भेड़िए बदलते रहे हैं
हर दौर में
मगर भेड़िए अतीत में भी जीते थे
वर्तमान में भी जीत रहे हैं
भविष्य में भी जीतेंगे... लाजवाब
सटीक रचना , सामयिक परिवेश को उकेरती , बधाई विर्क जी
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