बुधवार, जुलाई 27, 2016

उलझन

आँखों की भाषा
पढाई नहीं जाती कहीं भी 
मुस्कराहटों के अर्थ 
मिलते नहीं किसी शब्दकोश में

तुम्हारी आँखें
तुम्हारी मुस्कराहटें 
सीधा-सादा गद्य कब कहती हैं
कभी वे 
मुझे इजाजत देती लगती हैं
प्यार के इजहार का 
कभी वे
लगती हैं मेरा मुँह चिढ़ाती हुई

क्या समझ सकोगे मेरी उलझन
क्योंकि एक ही अर्थ नहीं होता 
आँखों की कूट भाषा का 
कविता-सी मुस्कान का

दिलबागसिंह विर्क
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बुधवार, जुलाई 13, 2016

रौशनी का घर

अक्सर डराता तो है अँधेरा
लेकिन तब तक 
जब तक हावी होता है यह
हमारी सोच पर 

हिम्मत का दामन थामते ही
खुलने लगते हैं रास्ते 
अँधेरे के एक क़दम आगे 
मिलता है घर रौशनी का 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, जुलाई 06, 2016

तेरी आँखें

बहुत शिकवे थे
तुझसे मिलने से पहले
तुझे करीब पाकर 
कुछ याद नहीं रहा मुझे
इश्क़ है यह
या फिर
तेरी आँखों की जादूगरी 
पागल कर गई है
जो मुझे

झील नहीं तेरी आँखें
मगर डूब गया हूँ मैं ।

दिलबागसिंह
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