एक तरफ हैं
वे लोग
जो जला रहे हैं देश को
जाति के नाम पर
धर्म के नाम पर
भाषा के नाम पर
दूसरी तरफ हैं वे लोग
जो जला तो नहीं रहे देश को
मगर वे देख रहे हैं तमाशा
चुपचाप बैठकर
तीसरी तरह के लोग भी हैं
जो न जला रहे हैं देश को
न बचा रहे हैं
वे बस बहस कर रहे हैं
ऊंगली उठा रहे हैं
इस्तीफा मांग रहे हैं
इस देश पर अपना हक़
जताते हैं सब
मगर दिखता नहीं कोई
देश को बचाने वाला
आखिर ये देश किसका है ?
दिलबागसिंह विर्क
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