बुधवार, अप्रैल 18, 2018

कहीं तो बहार होगी, कहीं तो चाँद चमका होगा

यह मुमकिन नहीं, हर शख़्स मुझ-सा तन्हा होगा 
कहीं तो बहार होगी, कहीं तो चाँद चमका होगा। 

जिसको सह जाए ये मासूम-सा दिल आसानी से 
मुझे नहीं लगता, कोई ग़म इतना हल्का होगा ।

सकूं की तलाश में मुसल्सल बेचैन होता गया मैं 
मुक़द्दर से लड़े जो, क्या कोई मुझ-सा सरफिरा होगा।

तुम्हारे जश्न में कैसे शामिल होंगे वो परिंदे 
इन बारिशों में जिनका आशियाना बिखरा होगा 

उसे तो ख़बर होगी, इसको संभालना आसां नहीं 
जिसका भी दिल बच्चे की तरह मचला होगा ।

वक़्त ही बताया करता है आदमी की असलियत 
चेहरा देखकर न कहो ‘विर्क’ वो कैसा होगा ।

दिलबागसिंह विर्क 
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4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-04-2017) को "कहीं बहार तो कहीं चाँद" (चर्चा अंक-2946) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

NITU THAKUR ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा आपने .. मन में गहरे उतरते भाव
बहुत सारी शुभकानाएं

अपर्णा वाजपेयी ने कहा…

वाह!!! सारे शेर कमाल के हैं। बहुत सुंदर गज़ल। आपकी रचनाशीलता लाज़वाब है।
सादर

Sudha Devrani ने कहा…

जिसको सह जाए ये मासूम-सा दिल आसानी से
मुझे नहीं लगता, कोई ग़म इतना हल्का होगा ।
वाह!!!
बहुत लाजवाब....

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