जब से देखी है तेरे चेहरे की तबो-ताब
फीका-फीका लगे तब से चाँद का शबाब।
ये तन्हाइयाँ, ये दूरियाँ अब गवारा नहीं इसे
क्या बताएँ तुम्हें, ये दिल है कितना बेताब।
किताबे-इश्क़ पढ़ने का हुआ है ये असर
आते हैं अब हमें तो बस तेरे ही ख़्वाब।
कितना चाहते हैं तुम्हें, ये क्या पूछा तूने
ऐ पागल, गर चाहत है तो होगी बेहिसाब।
दिल में वफ़ा, आँखों में गै़रत होना ज़रूरी है
कुछ भी अहमियत नहीं रखता कोई ख़िताब।
हर सू फैला देना ‘विर्क’ मुहब्बत की ख़ुशबू
देखना फिर आ जाएगा, ख़ुद-ब-ख़ुद इंकलाब।
दिलबागसिंह विर्क
******
3 टिप्पणियां:
कितना चाहते हैं तुम्हें, ये क्या पूछा तूने
ऐ पागल, गर चाहत है तो होगी बेहिसाब।
दिल में वफ़ा, आँखों में गै़रत होना ज़रूरी है
कुछ भी अहमियत नहीं रखता कोई ख़िताब।
हर सू फैला देना ‘विर्क’ मुहब्बत की ख़ुशबू
देखना फिर आ जाएगा, ख़ुद-ब-ख़ुद इंकलाब।
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
khoobsoorat andaaz me kahi hai gazal ,
khud baa khud kahi gai hai gzal
veerubhai05.blogspot.com
वाह बहुत खूब
सुन्दर है ।
एक टिप्पणी भेजें