कुछ इस क़द्र गर्दिश में है मेरा सितारा
कहीं दूर तक नज़र नहीं आता किनारा।
उन्हें गवारा नहीं मेरी हाज़िरजवाबी
मुझे ख़ामोश रहना, नहीं है गवारा।
अपने हुनर की दाद पाना चाहता होगा
तभी ख़ुदा ने चाँद को ज़मीं पर उतारा।
बस अपनी मुलाक़ात हो नहीं पाती वरना
गैरों से रोज़ पूछता हूँ, मैं हाल तुम्हारा।
बीच रास्ते में कहीं साथ छोड़ देता है ये
क़दमों के साथ घर न आए, दिल आवारा।
फ़र्ज़ानों की नज़र में तो दीवाना ही हूँ मैं
कौन पागल है ‘विर्क’, जिसने मुझे पुकारा।
दिलबागसिंह विर्क
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3 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर
उम्दा गजल
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-11-2018) को "प्यार से पुकार लो" (चर्चा अंक-3136) (चर्चा अंक-3122) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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