ख़ुशी का बूटा उग सके हर घर के आँगन में
आ दुनिया के ग़म, सिमट जा मेरे दामन में।
बाल सफेद होने की बात करें जिसके लिए
मैंने उतना महसूस कर लिया है बचपन में।
क्या करें, कभी-कभी वो भी अपना नहीं होता
जो शख़्स हो ख़्यालों में, ख़्वाबों में, धड़कन में।
दर्द होता है कैसा, ये बस उसी से पूछो
लगी हो आग जिसके तन में, मन में।
बारिशें भी कभी-कभी घर उजाड़ा करती हैं
क्यों इंतज़ार है तुम्हें, क्या रखा है सावन में ?
दिल को मज़बूत करके फ़ैसला ले ही लेना
जीना मुश्किल है ‘विर्क’ रास्तों की उलझन में।
दिलबागसिंह विर्क
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