बुधवार, जनवरी 30, 2019

दर्द ने फिर दस्तक दी है, दिल के दरवाजे पर

सदा आज़माते रहो, अपनी दुआओं का असर 
ख़ुदा की रहमत से, शायद कभी बदले मुक़द्दर। 

लोगों के पत्थर पूजने का सबब समझ आया 
जब से मेरा ख़ुदा हो गया है, वो एक पत्थर। 

साक़ी से कहना, वो अपना मैकदा खुला रखे 
दर्द ने फिर दस्तक दी है, दिल के दरवाजे पर। 

बेचैनियों, बेकरारियों का मौसम है यहाँ 
चैनो-सकूँ की मिलती नहीं, कहीं कोई ख़बर।

उम्र भर का रोग ले बैठोगे, एक पल की ख़ता से 
हसीं लुटेरों की बस्ती में, थाम के रखो दिल-जिगर। 

मुहब्बत के चमन में,चहके न ख़ुशियों की बुलबुल 
कौन सैयाद आ बैठा है, लगी है किसकी नज़र ? 

ख़ुद को मिटाने का जज़्बा भी होना ज़रूरी है 
आसां नहीं होता ‘विर्क’ इस चाहत का सफ़र।

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दिलबागसिंह विर्क  

बुधवार, जनवरी 23, 2019

अपने घर जलाए लोगों ने करके नफ़रत

ऐ दिल न डर बेमतलब, दिखा थोड़ी हिम्मत 
इश्क़ किया जिसने, वही जाने इसकी लज़्ज़त। 

वो सहमे-सहमे से हैं और हम बेचैन 
देखो, कैसे होगा अब इजहारे-मुहब्बत। 

फिर भी न जाने क्यों ये समझते ही नहीं 
अपने घर जलाए लोगों ने करके नफ़रत। 

क्यों रस्मो-रिवाजों को ले बैठते हो तुम 
दिल अगर करना चाहे किसी की इबादत। 

गर इंसानीयत जाग जाए हर इंसान में 
देखना, ज़मीं पर उतर आएगी जन्नत। 

ज़िंदगी का मज़ा लूटते हैं अक्सर वही लोग 
हल पल मुसकराना है ‘विर्क’ जिनकी आदत। 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, जनवरी 16, 2019

कोई गुनाह तो नहीं करते, गर मुहब्बत करते हो

डरना ख़ुदा से, गर इंसानीयत से बग़ावत करते हो 
ख़ुदा की इबादत है, गर इंसान की इबादत करते हो। 

आस्तीन के साँपों का भी ढूँढ़ना होगा इलाज तुम्हें 
सरहद पर खड़े होकर मुल्क की हिफ़ाज़त करते हो। 

बदल सकती है हर शै, गर चाहो तुम दिल से बदलना 
लोगों की देखा-देखी, क्यों किसी से हिकारत करते हो ? 

सोचो तो सही, क्या हो गया है तुम्हारी ज़मीर को 
कुर्सी के लिए तुम आदमी से सियासत करते हो। 

सच में क़ाबिले-तारीफ़ होगा आपका हौसला 
हैवानीयत के दौर में अगर शराफ़त करते हो। 

क्यों छुपाओ किसी से ‘विर्क’, क्यों बेमतलब डरो
कोई गुनाह तो नहीं करते, गर मुहब्बत करते हो। 

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दिलबागसिंह विर्क 

बुधवार, जनवरी 09, 2019

दिल का दर्द सुबहो-शाम पाया

मुहब्बत में कब आराम पाया 
दिल का दर्द सुबहो-शाम पाया। 

जितना ज्यादा सोचा है मैंने 
ख़ुद को उतना ही नाकाम पाया। 

मैं कौन हूँ तुम्हें भुलाने वाला 
हर धड़कन पर तेरा नाम पाया। 

मेरी वफ़ा ज़ाया तो नहीं गई 
अश्कों-आहों का इनाम पाया। 

क्या उम्मीद रखूँ, तेरे कूचों में
इश्क़ को बहुत बदनाम पाया। 

हुनर कम, लिखना ख़ता ज्यादा लगे
विर्क’ मैंने ये कैसा काम पाया। 

दिलबागसिंह विर्क 
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बुधवार, जनवरी 02, 2019

ऐ ख़ुदा ! बता तो सही, अब तुझे क्या कहें

बताओ क्या करें, दर्द को कैसे दवा कहें 
कुछ हैरत नहीं अगर ज़िन्दगी को सज़ा कहें। 

मतलबपरस्त दुनिया में मक्कारी है, गद्दारी है 
रिश्तों में कुछ भी ऐसा नहीं, जिसे वफ़ा कहें। 

ज़मीं पर हो गई है, ख़ुदाओं की भरमार 
ऐ ख़ुदा ! बता तो सही, अब तुझे क्या कहें। 

समझ न आए, किसकी बात छेड़ें, छोड़ दें किसे 
सब एक से हैं, क्यों किसी को बेमतलब बुरा कहें। 

क़ातिल इरादों को वो रोज़ देता है अंजाम 
तुम्हीं बताओ, अब किस-किस को हादसा कहें। 

लोगों जैसे ही तुम हो, फिर गिला क्या करना 
यूँ तो सोचते हैं ‘विर्क’ हम तुझे बेवफ़ा कहें। 

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दिलबागसिंह विर्क