डरना ख़ुदा से, गर इंसानीयत से बग़ावत करते हो
ख़ुदा की इबादत है, गर इंसान की इबादत करते हो।
आस्तीन के साँपों का भी ढूँढ़ना होगा इलाज तुम्हें
सरहद पर खड़े होकर मुल्क की हिफ़ाज़त करते हो।
बदल सकती है हर शै, गर चाहो तुम दिल से बदलना
लोगों की देखा-देखी, क्यों किसी से हिकारत करते हो ?
सोचो तो सही, क्या हो गया है तुम्हारी ज़मीर को
कुर्सी के लिए तुम आदमी से सियासत करते हो।
सच में क़ाबिले-तारीफ़ होगा आपका हौसला
हैवानीयत के दौर में अगर शराफ़त करते हो।
क्यों छुपाओ किसी से ‘विर्क’, क्यों बेमतलब डरो
कोई गुनाह तो नहीं करते, गर मुहब्बत करते हो।
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दिलबागसिंह विर्क
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दिलबागसिंह विर्क
2 टिप्पणियां:
वाह
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (18-01-2019) को "क्या मुसीबत है" (चर्चा अंक-3220) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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