रविवार, अप्रैल 21, 2019

हर बार हारा मैं, हर बार हाथ आई बेबसी

दरवाजे पर देकर दस्तक, लौटती रही ख़ुशी 
वाह-रे-वाह मेरी तक़दीर, तू भी ख़ूब रही। 

हालातों को बदलने की कोशिशें करता रहा 
हर बार हारा मैं, हर बार हाथ आई बेबसी। 

कभी किसी नतीजे पर पहुँचा गया न मुझसे 
अक्सर सोचता रहा, कहाँ ग़लत था, कहाँ सही। 

जिन मसलों ने उड़ाई हैं अमनो-चैन की चिंदियाँ 
उनमें कुछ मसले हैं नस्ली, बाक़ी बचे मज़हबी। 

आपसी रंजिशों ने दी है सदियों की गुलामी हमें 
भूल गए बीते वक़्त को, आग फिर लगी है वही। 

कुछ सुन लेना होंठों से, कुछ समझ लेना आँखों से 
ये दर्द भरी दास्तां, ‘विर्क’ कुछ कही, कुछ अनकही। 

दिलबागसिंह विर्क 

11 टिप्‍पणियां:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 21/04/2019 की बुलेटिन, " जोकर, मुखौटा और लोग - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. जिन मसलों ने उड़ाई हैं अमनो-चैन की चिंदियाँ
    उनमें कुछ मसले हैं नस्ली, बाक़ी बचे मज़हबी।
    बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद आदरणीय दिलबाग जी।

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  3. बहुत सुन्दर
    जिन मसलों ने उड़ाई हैं अमनो-चैन की चिंदियाँ
    उनमें कुछ मसले हैं नस्ली, बाक़ी बचे मज़हबी।

    आपसी रंजिशों ने दी है सदियों की गुलामी हमें
    भूल गए बीते वक़्त को, आग फिर लगी है वही।
    क्या कहने !!!

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-04-2019) को "झरोखा" (चर्चा अंक-3314) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    पृथ्वी दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. बहुत ही अच्छे लाजवाब शेर हैं सभी ...
    कमाल की ग़ज़ल हुई है ...

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  6. बहुत ही शानदार।
    सभी शेर तारीफ ए काबिल ।
    वाह्ह्ह ।

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  7. कभी किसी नतीजे पर पहुँचा गया न मुझसे
    अक्सर सोचता रहा, कहाँ ग़लत था, कहाँ सही।
    बहुत ही लाजवाब...
    वाह!!!

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यहाँ तक पहुंचने के लिए आभार | आपके शब्द मेरे लिए बहुमूल्य हैं | - दिलबाग विर्क