भूलकर औक़ात, क्या से क्या हो जाते हैं लोग
थोड़ी-सी ताक़त पाकर ख़ुदा हो जाते हैं लोग।
तमन्ना रखते हैं, कि उम्र भर निभती रहे दोस्ती
छोटी-सी बात को लेकर खफ़ा हो जाते हैं लोग।
मुहब्बत को गालियाँ देकर, रोते हैं बाद में
बस हसीं चेहरे देखकर फ़िदा हो जाते हैं लोग।
यूँ तो सब किया करते हैं बातें वफ़ा की मगर
मौक़ा मिलते ही अक्सर बेवफ़ा हो जाते हैं लोग।
ख़ुशियाँ पाने की बेचैनियाँ हैं दिल में इस क़द्र
उम्र भर के लिए ख़ुशी से जुदा हो जाते हैं लोग।
तेरे जैसा ही हाल है ‘विर्क’ सबका यहाँ पर
फिर पछताते हैं, जब रुसवा हो जाते हैं लोग।
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दिलबागसिंह विर्क
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11 टिप्पणियां:
.. बहुत कुछ हो जाते हैं लोग बहुत ही सार्थक और सुंदर पंक्तियां आपने लिखी है ऐसे ही लिखा कीजिए मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं
ग़ज़ल के रूप मे आपने सच्चाई बयाँ कर दी।
उम्दा और सटीक सार्थक सृजन।
वाह
काबिल-ए-तारीफ़ ।
वाह!लाजवाब !
ख़ुशियाँ पाने की बेचैनियाँ हैं दिल में इस क़द्र
उम्र भर के लिए ख़ुशी से जुदा हो जाते हैं लोग।
बहुत खूब,सादर नमन सर
आज की सच्चाई
वाह!बहुत ख़ूब।
सादर
वाह!
बेहतरीन ग़ज़ल 🌹🙏🌹
आज के समय में लोगों का स्वार्थी हो जाना सामान्य सी बात है..सही आइना दिखाया है आपने..समय मिले तो कभी मेरे ब्लॉग पर अवश्य भ्रमण करें..सादर नमन..
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