▼
ग़म बोकर
सींचा आँसुओं से
कहकहों से सींची
ख़ुशियों की क्यारी
पकी जब खेती
शब्द उगे
नज्म, ग़ज़ल, गीत बनकर
बीज थे जुदा-जुदा पर
फसल की ख़ुशबू एक-सी थी
ये करिश्मा शायद
काग़ज़ के खेत का है
*****
जीवन
उथले पानी में
बीता है
जीवन सारा
और अक्सर
हमने बात की है
गोताखोरी की
****
ज़िंदगी – 1
पक्षियों का कलरव
भँवरों का गुंजार
फूलों का खिलना
हवा का चलना
है ज़िंदगी
यह अर्थ नहीं रखती
महज काटने में
इसे तो जीया जाता है
चहककर
महककर
****
ज़िंदगी – 2
ज़िंदगी की परतों के
भीतर ही कहीं
छुपी रहती ज़िंदगी
जैसे छुपा हो
हारिल कोई
हरे पत्तों के बीच
****