सोमवार, सितंबर 16, 2024

अर्जुन विषाद योग ( भाग - 4 )

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कपटी कौरव हैं भले, हम तो हैं निष्पाप। 
इन दुष्टों को मारकर, हम क्यों भोगें पाप ।। 21 ।।

पागलपन वे कर रहे, सेना है निर्दोष। 
अहंकार में मस्त हैं, जरा न करते होश ।। 22 ।।

उनकी उन पर छोड़ दें, हम तो रखते ज्ञान। 
करता युद्ध विनाश है, मिलता न समाधान ।। 23 ।।

मधुसूदन हम जानते, सीधी-सी यह बात। 
भटकें रास्ता नारियाँ, युद्ध बिगाड़े जात ।। 24।।

दानव फिर तांडव करें, जब मिट जाए धर्म। 
जान बूझकर हम करें, कैसे ऐसा कर्म ।। 25 ।।

युद्ध नहीं थोपें कभी, शांति बनाए राज। 
बड़ी ज़रूरी बात है, सोचे सकल समाज ।। 26 ।।

भली-भाँति मैं सोचकर, डाल रहा हथियार। 
रण से अच्छा है यही, मुझको दें वे मार।। 27।।

संजय राजा से कहे, है अजीब व्यवहार। 
आकर इस रणक्षेत्र में, अर्जुन करे विचार।। 28 ।।

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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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सोमवार, सितंबर 09, 2024

अर्जुन विषाद योग ( भाग - 3 )

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अर्जुन बोला कृष्ण से, उनके चलो समीप। 
देखूँ अंतिम बार मैं, बुझने कितने दीप ।।13।।

माधव मानी बात है, रथ आया है बीच। 
चिंता में अर्जुन पड़ा, सोचे आँखें मीच* ।।14।।

अर्जुन ऐसे है खड़ा, ज्यों सूँघा हो साँप । 
केशव को कहने लगा, हाथ रहे हैं काँप ।।15।।

बाँधव ही हैं सामने, मैं कैसे दूँ मार।
गांडीव गिरे हाथ से, मुझे हार  स्वीकार ।।16 ।।

पुत्र, पितामह, तात पर, कैसे छोडूं बाण। 
भाई-बाँधव मारकर, होगा क्या कल्याण ।। 17 ।।

सोचूँ जब हालात पर, पाप करे भयभीत । 
अपने कुल का नाश कर, नहीं चाहिए जीत ।।18।।

हूँ मैं क्षत्रिय जाति से, रण से करता प्रीत। 
लेकिन सत्ता के लिए, बुरी युद्ध की रीत ।। 19 ।।

सिर्फ राजसुख ही नहीं, मिले अगर यह शोक
करता अस्वीकार हूँ, मैं तो तीनों लोक ।। 20 ।।

* बंद करके 
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 

सोमवार, सितंबर 02, 2024

अर्जुन विषाद योग ( भाग - 2 )

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भाग - 2

दुश्मन सेना देखकर, अब देखो निज ओर। 
सेना अपनी कम नहीं, योद्धा हैं सब घोर ।।8।।

भीष्म पितामह से बड़ा, योद्धा होगा कौन। 
सौ भाई हम भी खड़े, साथ पुत्र है द्रोण ।।9।।

सबसे बढ़कर आप हैं, कर देना संहार। 
युद्ध नहीं यह आम है, नहीं चाहता हार ।। 10 ।।

भीष्म किया रणघोष है, करने को तैयार। 
बिगुल बजाया कृष्ण ने, किया युद्ध स्वीकार।। 11 ।।

शंखनाद करने लगे, योद्धा दोनों ओर । 
गूंज उठा है आसमां, हुआ भयंकर शोर ।। 12 ।।

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सोमवार, अगस्त 26, 2024

अर्जुन विषाद योग ( भाग - 1 )

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दोहे 

धर्म क्षेत्र कुरु क्षेत्र में, कैसा मचा बवाल । 
राजा संजय से कहे, मुझे सुनाओ हाल ।। 1।।

दिव्य दृष्टि से देखता, संजय पा आदेश । 
कौरव-पांडव सब खड़े, धर वीरों का भेष ।। 2।।

सेनाएँ हैं सामने, लड़ने को तैयार। 
बड़े भयानक दृश्य का, होता है दीदार ।। 3।।

युवराज कहे द्रोण से, सेना बड़ी विशाल। 
देखो ! द्रुपद पुत्र रचे, व्यूह बड़ा विकराल ।। 4।।

उनकी सेना में खड़े, काशीराज महान। 
धृष्टकेतु है सामने, पीछे चेकीतान।। 5।।

पाँचों पांडव हैं खड़े, अस्त्र-शस्त्र ले हाथ। 
वीर पिता समतुल्य जो, पुत्र खड़े हैं साथ ।। 6।।

अर्जुननंदन भी खड़ा, योद्धा खड़े अनेक ।
कृष्ण बना रथवान है, रणजेता  प्रत्येक ।। 7 ।।
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पुस्तक - गीता दोहवली

शुक्रवार, अगस्त 16, 2024

अर्जुन विषाद योग ( सार )

इस अध्याय की शुरूआत धृतराष्ट्र के युद्ध का हाल जानने के प्रश्न से होती है, जिसके उत्तर में संजय बताता है कि दुर्योधन द्रोणाचार्य के पास जाकर पहले विपक्षी सेना और फिर अपनी सेना के बारे में बताता है। भीष्म पितामह शंखनाद करते हैं। उधर से कृष्ण प्रत्युत्तर में शंखनाद करते हैं। फिर सभी महारथी शंखनाद करते हैं। अर्जुन कृष्ण को रथ को दोनों सेनाओं के बीच ले जाने को कहता है, जिससे वे सभी को देख सके, लेकिन बीच में आकर वह करुणा से भर उठता है और युद्ध की व्यर्थता की बात करता है। वह कहता है कि पापियों को मारकर वे निष्पाप कैसे रहेंगे? वह अब सिर्फ़ राज्य ही नहीं, तीनों लोक के राज्य को भी छोड़ने को तैयार है और हथियार डालकर बैठ जाता है।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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