सोमवार, अक्टूबर 07, 2024

सांख्य योग ( भाग - 3 )

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अर्जुन ! ऐसे देख तू, जैसे पुरुष महान। 
उठ ऊपर इस देह से, कर आत्मा का ध्यान ।।17 11

सारे विचार त्याग दे, कर ले मन को शुद्ध। 
पाप नहीं इसमें जरा, करना होगा युद्ध ।। 18।।

हे अर्जुन ! नश्वर नहीं, आत्मा देह समान। 
जन्म-मरण से मुक्त है, तू इसको ले जान ।।19।।

हैरानी से देखते, कुछ सुनकर हैरान। 
कुछ सुनकर समझे नहीं, बड़ा गूढ़ यह ज्ञान ।।20 ।।

अजर अमर आत्मा रहे, इसका यही स्वभाव 
पहले भी है, बाद भी, शरीर एक पड़ाव ।।21।।

शस्त्रों से कटती नहीं, जला न सकती आग।
आत्मा सदैव ही रहे, तू निद्रा से जाग ।।22।।

जो है तेरे सामने, वही जरूरी कर्म। 
पाप-पुण्य को छोड़ दे, युद्ध बना है धर्म ।।23।।

मर जाना या मारना, है वीरों का काम। 
रण से जो भी भागते, होते हैं बदनाम ।।24।।
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डॉ. दिलबागसिंह विर्क 
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6 टिप्‍पणियां:

Sweta sinha ने कहा…

गूढ़ ज्ञान को सहज शब्दों में पिरोना सचमुच सराहनीय है।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ८ अक्टूबर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीय

Anita ने कहा…

गीता का अमर ज्ञान जिसे जितना दोहराया जाये कम है

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीय

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

गीता ज्ञान बहुत पावन

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

हार्दिक आभार आदरणीय

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