माना कि तुम
उस दुर्योधन से नहीं हो
जिसने छीन लिया था
भाइयों का राज-पाट.
माना कि तुम
उस दुशासन से नहीं हो
जिसने भरी सभा में
निर्वस्त्र करना चाहा था
कुलवधू को .
माना कि तुम
उस कर्ण से नहीं हो
जो अहसानों के बोझ तले दबा
करता रहा अंध समर्थन
अन्याय और कपट का .
माना कि तुम
उस शकुनी से नहीं हो
जो उत्तरदायी था
लाक्षागृह और द्युत जैसी
कपटी योजनाओं का.
माना कि तुम
उस धृतराष्ट्र से नहीं हो
जो अँधा हो गया था
पुत्र प्रेम में .
इतना होने पर भी
ये न कहो
कि दोषी नहीं हो तुम
बुरे हालातों के लिए
क्योंकि तुम चुप बैठे हो
भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य
कृपाचार्य , विदुर की तरह
क्योंकि तुम
प्रतिज्ञा नहीं ले रहे भीम की तरह
क्योंकि तुम
प्रेरित नहीं कर रहे अर्जुन को
गांडीव उठाने के लिए
कृष्ण की तरह .
यही दोष है तुम्हारा
इसीलिए तुम उत्तरदायी हो
बुरे हालातों के लिए .
* * * * *
15 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
यही दोष है तुम्हारा
इसीलिए तुम उत्तरदायी हो
बुरे हालातों के लिए .
आज के सन्दर्भ में सटीक पंक्तियाँ .. चाहे कोई कितना ही ईमानदार हो ...यदि गलत बातों पर चुप रहता है तो दोषी तो हो ही जाता है
समसामयिक हालात पर सुंदर प्रस्तुति.
बहुत खूब दिलबाग जी.मर्मस्पर्शी कविता के लिए बधाई .ऐसे ही लिखते रहे
Bahut khub kaa aapne .
Bilkul sahi hai .
Aawaz uthani hi hogi buraai aur zulm ke khilaaf .
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! दिल को छू गई!उम्दा प्रस्तुती!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
प्रेरित करती बहुत ही बढ़िया रचना
यही दोष है तुम्हारा
इसीलिए तुम उत्तरदायी हो
बुरे हालातों के लिए .
सही बात कही आपने, अच्छी रचना बधाई
शानदार। पुरी तरह से आपकी बातों से सहमत हुॅ।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
क्योंकि तुम चुप बैठे हो
भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य
कृपाचार्य , विदुर की तरह ...
बहुत सुन्दर.... झकझोरती रचना....
सादर बधाई...
बहुत ही सार्थक और सुन्दर रचना | बढ़िया विर्क जी |
मेरी नई रचना जरुर देखें |अच्छा लगे तो ब्लॉग को फोलो भी कर लें |
मेरी कविता: उम्मीद
Virk Saahab.. Bilkul sahi kaha aapne.. Apni haalaton ke jimmedar hum khud hain.. Bahut hi prabhavshali rachna... Aabhar..
मन को उद्वेलित करने वाली बेहतरीन रचना....
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें.
विर्क जी, इस गम्भीर चिंतन के लिए बधाई स्वीकारें।
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लो जी, मैं तो डॉक्टर बन गया..
क्या साहित्यकार आउट ऑफ डेट हो गये हैं ?
ek samayik chintansheel or bahut sashakt rachna... sach kaha ki anyaya ke viruddha chup rahena bhi dosh hai..or is tareh hum sab doshi hain....
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