कितना गम उठाया, मुझे याद नहीं
क्यों खुद को भुलाया, मुझे याद नहीं ।
दोस्तों के शहर में क्या दुश्मन भी थे
कब, कहाँ धोखा खाया, मुझे याद नहीं ।
वायदा करके भी वापिस न आया वो
क्या बहाना बनाया, मुझे याद नहीं ।
मुहब्बत के हश्र से जब वाकिफ था मैं
फिर क्यों दिल लगाया, मुझे याद नहीं ।
बेवफाई , बस यही मिली हर बार
किस-किस को आजमाया, मुझे याद नहीं ।
इश्क किया है ' विर्क ' ये है याद मुझे
क्या खोया, क्या पाया, मुझे याद नहीं ।
दिलबाग विर्क
* * * * *
9 टिप्पणियां:
वाह वाह ..
बहुत खूब !!
बहुत खूबसूरत अंदाज़ में पेश की गई है गज़ल......मित्रता दिवस की शुभकामनायें।
यार! ग़ाफ़िल तो हम हैं आप क्यूँ भूलने लगे...बहुत ही सुन्दर है ये क्या कहा??? हाँ 'याद नहीं'
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
इसे अग़ज़ल नहीं ग़ज़ल ही कहेंगे सर!
कितना गम उठाया , मुझे याद नहीं
क्यों खुद को भुलाया , मुझे याद नहीं
Bahut Sunder.... Behtreen Gazal
दोस्तों के शहर में क्या दुश्मन भी थे
कब , कहाँ धोखा खाया , मुझे याद नहीं .
वाह बहुत खूब ....
इस पत्थर के शहर में सब ऐसे ही थे
बस हमहे ही पता ना चला .....(अनु )
मुहब्बत के हश्र से जब वाकिफ था मैं
फिर क्यों दिल लगाया , मुझे याद नहीं .
बेवफाई , बस यही मिली हर बार
किस-किस को आजमाया , मुझे याद नहीं
baat jam gayi ,laazwaab
बेवफाई , बस यही मिली हर बार ,
किस-किस को आजमाया , मुझे याद नहीं .
बहुत सुन्दर !
बहुत खूब क्या खोया क्या पाया मुझे याद नहीं ..तभी तो बात बनती है ..सुन्दर रचना
भ्रमर५
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