माना कि तेरी जुदाई से गए थे बिखर से हम
नामुमकिन तो था मगर, संभल गए फिर से हम ।
दोनों में रहा वो इस दिल के क़रीब फिर
वस्ल को कैसे अच्छा कहें हिज्र से हम ।
एक यही अमानत तो बची है प्यार की
परेशां क्यों होंगे दर्द - ए- जिगर से हम ।
अपने दम पर हासिल करेंगे हर मुकाम
लो शुरू कर रहे हैं ज़िंदगी सिफ़र से हम ।
खूब शोर मचा मेरी बेवफाई का मगर
और बुलंद हुए महफ़िलों में जिक्र से हम ।
चलना शौक़ था या मजबूरी, पता नहीं
कर न पाए दोस्ती ' विर्क ' शिखर से हम ।
दिलबाग विर्क
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