गम के इस दौर में थोड़ी ख़ुशी के लिए
लिखता हूँ जिन्दगी को जिन्दगी के लिए ।
देखना खुदगर्जी हमारी हमें ले डूबेगी
काश ! हम करते कुछ कभी किसी के लिए ।
यूं हाथ पर हाथ धरे कब तक बैठोगे
कुछ तो करना होगा आदमी के लिए ।
आदमी के लहू से न बुझेगी प्यास
मुहब्बत चाहिए दिल की तश्नगी के लिए ।
हम न आह भर सके, न दुआ कर सके
अब क्या कहा जाए, ऐसी बेबसी के लिए ।
खस्ता हाल हो गई है यह जिन्दगी
आओ पुकारें विर्क किसी नबी के लिए ।
* * * * *
5 टिप्पणियां:
बढ़िया प्रस्तुति |
अच्छे भाव ||
बहुत खूब...
सुन्दर रचना . sirf आदमी होना mayssar नहीं है आदमी के लिए .
आदमी के लहू से न बुझेगी प्यास
मुहब्बत चाहिए दिल की तश्नगी के लिए ...
बहुत खूब ... ये प्यास मुहब्बत से ही बुझेगी ...
अच्छा लिखा है ...
गम के इस दौर में थोड़ी ख़ुशी के लिए
लिखता हूँ जिन्दगी को जिन्दगी के लिए ।
देखना खुदगर्जी हमारी हमें ले डूबेगी
काश ! हम करते कुछ कभी किसी के लिए ।
चार दिन की ज़िंदगी का फलसफा इन चार पंक्तियों में समेट दिया, वाह !!!!!
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