शुक्रवार, अप्रैल 20, 2012

सहारा तिनके-सा ( हाइकु )

बनना तुम
सहारा तिनके-सा
धूप सर्दी की ।
जवाब मांगो 
हमारे वोटों से ही
मिली है सत्ता ।
सोचते नहीं
लकीर को पीटते
लोग अक्सर ।
बमों से कभी
फैसले नहीं होते
विनाश होता ।

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8 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी प्रविष्ठी की चर्चा कल के चर्चा मच पर लगा दी है!

शेखचिल्ली का बाप ने कहा…

बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती हुई बेहतरीन तख़लीक़.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सभी सटीक ...अच्छी हाइकु रचनाएँ

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

घटिया राजा
दुखियारी है प्रजा
भारत रोता.


सार्थक हायेकु सर.

सादर.

amrendra "amar" ने कहा…

sabhi huyku behtreen .aabhar

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी बातें समाहित की है आपने इन हाइकुओं में।

surenderpal vaidya ने कहा…

सोचते नहीँ
लकीर को पीटते
लोग अक्सर ।
.... बहुत बढ़िया , धन्यवाद ।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

वाह बहुत बढिया

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