जिन्दगी को पिरोना चाहता हूँ ग़ज़ल में
भटक रहा हूँ मैं , इस तलाशे-साहिल में ।
कामयाब होकर लोग खुद बदल जाते हैं
वरना कब नशा होता है मंजिल में ।
अगर पत्थर दिल है वो तो भी क्या है
दिल जैसा कुछ तो होगा उसके दिल में ।
शायद मिले मुझे मौका कुछ कहने का
अभी तक जले है शमां उनकी महफिल में ।
आदमियों में कातिलों को क्या ढूंढना
आदमी ढूंढता हूँ मैं हर कातिल में ।
मुहब्बत ने विर्क ये हुनर सिखा दिया
मजा आने लगा है अब हर मुश्किल में ।
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भटक रहा हूँ मैं , इस तलाशे-साहिल में ।
कामयाब होकर लोग खुद बदल जाते हैं
वरना कब नशा होता है मंजिल में ।
अगर पत्थर दिल है वो तो भी क्या है
दिल जैसा कुछ तो होगा उसके दिल में ।
शायद मिले मुझे मौका कुछ कहने का
अभी तक जले है शमां उनकी महफिल में ।
आदमियों में कातिलों को क्या ढूंढना
आदमी ढूंढता हूँ मैं हर कातिल में ।
मुहब्बत ने विर्क ये हुनर सिखा दिया
मजा आने लगा है अब हर मुश्किल में ।
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14 टिप्पणियां:
बेहतरीन.....
दाद हाज़िर है...
सादर
अनु
वाह बहुत खूब
कामयाब होकर लोग खुद बदल जाते हैं
वरना कब नशा होता है मंजिल में ।
बेहतरीन...
उम्दा असआरों के साथ सजी हुई बेहतरीन ग़ज़ल!
Nice.
आदमियों में कातिलों को क्या ढूंढना
आदमी ढूंढता हूँ मैं हर कातिल में ।
गहन अनुभूतियों और दर्शन से परिपूर्ण इस ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई...
कामयाब होकर लोग खुद बदल जाते हैं
वरना कब नशा होता है मंजिल में ।
बहुत खूब ...बेहतरीन गज़ल
..बहुत्त ही बढ़िया रचनाएँ.....सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत खूब....
वाह! ख़ूब
बेहतर शैर ..
कामयाब होकर लोग खुद बदल जाते हैं
वरना कब नशा होता है मंजिल में ।
मुहब्बत ने विर्क ये हुनर सिखा दिया
मजा आने लगा है अब हर मुश्किल में ।
वाह, शनदार गज़ल में ज़िंदगी का फलसफा लिख दिया.
अगर पत्थर दिल है वो तो भी क्या है
दिल जैसा कुछ तो होगा उसके दिल में ।
wah...!! itne pyare shabd!!!
बहुत खूब !
मुह्ब्बत कर हुनरमन्द हो गया है दिलबाग
कि़सी भी मुश्किल में रहेगा अब वो आबाद !
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