बुधवार, अक्टूबर 10, 2012

अग़ज़ल - 46

ये दर्द मेरे दोस्तों की मेहरबानी का असर है 
अपनों ने रची हैं जो साजिशें, उनकी हमें खबर है ।

इसका नतीजा क्या होगा, यह तुम भी जानते हो 
पत्थर हैं उनके हाथ में, और मेरा कांच का घर है ।

जो बहुत शोर मचाया करते थे दोस्ती का अक्सर 
जब दुश्मनों को गिना, पाया उनका नाम भी उधर है ।

जिसके आसरे का था गरूर हमें, वो धोखा दे गया 
बरसात का मौसम शुरू होते ही, गया आशियाँ बिखर है।

मेरे मरे हुए सब अरमानों को तुम दफना देना कहीं 
मुझे अब फिर से इन सबके जिन्दा हो जाने का डर है ।

मैं समेट रहा हूँ विर्क खुद को अपने आगोश में 
महफिल की बात न करो, तन्हाई मेरा मुकद्दर है ।


****************

3 टिप्‍पणियां:

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

वाह.....
बेहतरीन गज़ल....
लाजवाब......हर शेर..

सादर
अनु

सुशील कुमार जोशी ने कहा…


बहुत खूब !
समेट लेना खुद को अपने आगोश में
पत्थर को भींच ले कोई कैसे होश में !!

संजय भास्‍कर ने कहा…

इसका नतीजा क्या होगा, यह तुम भी जानते हो
पत्थर हैं उनके हाथ में, और मेरा कांच का घर है ।

..............Lajwaab likhte hai virk ji

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