इसको तेरे बिन कुछ भी दिखता कब है
पागल दिल मेरा, मेरी सुनता कब है ।
कोई शख्स हसीं इसको बहका न सका
ये दिल अब और किसी को चुनता कब है ।
टूटेगा आखिर, इंसां का हश्र यही
कोई मिट्टी का पुतला बचता कब है ।
ये आशिक तेरे दर पर मरना चाहे
काबा माने बैठा है, उठता कब है ।
बस तुझको पाना ही है मकसद मेरा
बिन इसके दिल और दुआ करता कब है ।
'विर्क' भले अपना मिलना लगता मुश्किल
पर उम्मीदों का सूरज ढलता कब है ।
दिलबाग विर्क