मंगलवार, जुलाई 29, 2014

पूछती है मेरी वफ़ा मुझे

किस बात की दे रहा सज़ा मुझे 
है क्या गुनाह मेरा, बता मुझे । 
हिम्मत नहीं अब और सहने की 
 रुक भी जा, ऐ दर्द न सता मुझे । 

या ख़ुदा ! अदना-सा इंसान हूँ 
टूट जाऊँगा न आजमा मुझे । 

क्यों चुप रहा उसकी तौहीन देखकर 
ये पूछती है मेरी वफ़ा मुझे । 

आखिर ये बेनूरी तो छटे 
किन्हीं बहानों से बहला मुझे । 

एक अनजाना - सा खौफ हावी है 
अब क्या कहूँ ' विर्क ' हुआ क्या मुझे । 

दिलबाग विर्क 
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काव्य संकलन - प्रतीक्षा रहेगी 
संपादक - जयसिंह अलवरी 
प्रकाशक - राहुल प्रकाशन, सिरगुप्पा { कर्नाटक }
प्रकाशन वर्ष - मार्च 2007 
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बुधवार, जुलाई 16, 2014

तड़पने दिया दिल को , मैंने समझाया ही नहीं ।

       क्यों तेरे दिल को मुझ पर ऐतबार आया ही नहीं 
       मैंने  पूछा  था  तुझसे ,  तूने  बताया   ही  नहीं  । 
       
       बिखर गया था आशियाना मेरा देखते - देखते
       न तूने की कोशिश ,  मैंने भी बचाया ही नहीं ।  

       इस दुनिया में जीने के बहाने हैं बहुत मगर
       बहानों के खिलौनों से दिल बहलाया ही नहीं । 

       हर  वक्त  उमड़ता  रहा  तूफां  सीने  में  मेरे
       तड़पने दिया दिल को , मैंने समझाया ही नहीं ।

       हर किसी को क्यों बताएं दर्दे - दिल की दास्तां 
       वो क्या जानेंगे, जिन्होंने जख़्म खाया ही नहीं । 

       तेरा प्यार आखिरी था ' विर्क ' मेरी ज़िंदगी में 
       मैंने फिर कभी खुद को आजमाया ही नहीं । 
                  
                                दिलबाग                                            
                                *******

काव्य संकलन - अभिव्यक्ति 
संपादक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशक - अमन प्रकाशक, धामपुर - 246761
प्रकाशन वर्ष - { 2006 }

                                ******

मंगलवार, जुलाई 08, 2014

इस किनारे पर जब कोई तूफां उठा


          मेरा बोलना मुझे कितना महँगा पड़ा
          मैं लफ़्ज-दर-लफ़्ज खोखला होता गया |

          मैंने की थी जिनसे उम्मीद मुहब्बत की 
          पैसा उनका ईमान था, पैसा उनका खुदा |

          दोस्त  बाँट  लेते  हैं  दर्द  दोस्तों  का 
          देर हो चुकी थी जब तलक ये वहम उड़ा |

          कुछ बातें खुद ही देखनी होती हैं मगर 
          मैं हवाओं से उनका रुख पूछता रहा |
          उस किनारे पर तब गूंजें हैं कहकहे 
          इस किनारे पर जब कोई तूफां उठा |

          तन्हा होना ही था किसी-न-किसी मोड़ पर 
          यूं तो कुछ दूर तक वो भी मेरे साथ चला |

          तुम मेरी वफ़ाओं का हश्र न पूछो ' विर्क '
          मेरा नाम हो गया है आजकल बेवफ़ा |

                                दिलबाग                                             
                                *******

काव्य संकलन - अभिव्यक्ति 
संपादक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशक - अमन प्रकाशक, धामपुर - 246761
प्रकाशन वर्ष - { 2006 }

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