मैंने पूछा था तुझसे , तूने बताया ही नहीं ।
बिखर गया था आशियाना मेरा देखते - देखते
न तूने की कोशिश , मैंने भी बचाया ही नहीं ।
इस दुनिया में जीने के बहाने हैं बहुत मगर
बहानों के खिलौनों से दिल बहलाया ही नहीं ।
हर वक्त उमड़ता रहा तूफां सीने में मेरे
तड़पने दिया दिल को , मैंने समझाया ही नहीं ।
हर किसी को क्यों बताएं दर्दे - दिल की दास्तां
वो क्या जानेंगे, जिन्होंने जख़्म खाया ही नहीं ।
तेरा प्यार आखिरी था ' विर्क ' मेरी ज़िंदगी में
मैंने फिर कभी खुद को आजमाया ही नहीं ।
दिलबाग
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काव्य संकलन - अभिव्यक्ति
संपादक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशक - अमन प्रकाशक, धामपुर - 246761
प्रकाशन वर्ष - { 2006 }
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9 टिप्पणियां:
सुंदर पंक्तियां, लाजवाब
बहुत सुंदर वाह ।
उम्दा ग़ज़ल।
धन्यवाद।
badhiya likha hai....
बढ़िया ग़ज़ल
बढ़िया ग़ज़ल
सुंदर ग़ज़ल!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
वाह ... बहुत खूब कहा है आपने ...।
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