मंगलवार, जुलाई 08, 2014

इस किनारे पर जब कोई तूफां उठा


          मेरा बोलना मुझे कितना महँगा पड़ा
          मैं लफ़्ज-दर-लफ़्ज खोखला होता गया |

          मैंने की थी जिनसे उम्मीद मुहब्बत की 
          पैसा उनका ईमान था, पैसा उनका खुदा |

          दोस्त  बाँट  लेते  हैं  दर्द  दोस्तों  का 
          देर हो चुकी थी जब तलक ये वहम उड़ा |

          कुछ बातें खुद ही देखनी होती हैं मगर 
          मैं हवाओं से उनका रुख पूछता रहा |
          उस किनारे पर तब गूंजें हैं कहकहे 
          इस किनारे पर जब कोई तूफां उठा |

          तन्हा होना ही था किसी-न-किसी मोड़ पर 
          यूं तो कुछ दूर तक वो भी मेरे साथ चला |

          तुम मेरी वफ़ाओं का हश्र न पूछो ' विर्क '
          मेरा नाम हो गया है आजकल बेवफ़ा |

                                दिलबाग                                             
                                *******

काव्य संकलन - अभिव्यक्ति 
संपादक - अनिल शर्मा ' अनिल '
प्रकाशक - अमन प्रकाशक, धामपुर - 246761
प्रकाशन वर्ष - { 2006 }

                                ******

6 टिप्‍पणियां:

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत अशआर...

कविता रावत ने कहा…

उस किनारे पर तब गूंजें हैं कहकहे
इस किनारे पर जब कोई तूफां उठा
..बहुत खूब!

प्रभात ने कहा…

बहुत सुन्दर!

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

बेहतरीन......

Malhotra vimmi ने कहा…

बहुत सुंदर पंक्तियां

बेनामी ने कहा…

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your post. They are very convincing and can definitely work.
Still, the posts are very brief for newbies. May
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