एक यही मुकाम बाकी था, वो भी दिला दिया
तेरी मुहब्बत ने मुझे जाम पकड़ा दिया ।
लुटा चमन तो ख़ुशी का मशविरा लगा ऐसे
रुपया देकर जैसे किसी बच्चे को बहला दिया ।
बीते वक्त को भुला न पाया मैं शायद इसलिए
इस मौजूदा वक़्त ने अब मुझे भुला दिया ।
कितना साफ़ झूठ है कि प्यार कुछ नहीं देता
इसने मुझे सिसकियों का लम्बा सिलसिला दिया ।
दिल में ताजा रहे सदा याद तेरी इसलिए
भरने को हुआ जब जख्म तो सहला दिया ।
तेरी हर हसरत ' विर्क ' खुदा करे हो पूरी
अपनी हसरतों को मैंने मिट्टी में मिला दिया ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - काव्य सुधा
संपादक - प्रदीप मणि " ध्रुव "
प्रकाशन - मध्य प्रकाश नवलेखन संघ, भोपाल
प्रकाशन वर्ष - 200 7
4 टिप्पणियां:
Bahut hi khubsurat gazal .... !!!
तेरी हर हसरत ' विर्क ' खुदा करे हो पूरी
अपनी हसरतों को मैंने मिट्टी में मिला दिया ।
बहुत सुन्दर कविता। कुछ ही शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने। स्वयं शून्य
वाह ,वाह !!
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