लगते हैं अब तुम्हें जो दोस्त बहुत प्यारे
सच बोलोगे तो दुश्मन हो जाएँगे सारे ।
हालातों को बदलने के लिए कुछ करना होगा
आख़िर कब तक जीएँगे मुकद्दर के सहारे ।
कितना दुश्वार है जीना, ये उनसे पूछो
वहशियत ने छीन लिए जिनकी आँख के तारे ।
बातें छोड़ो, मुहब्बत से खोखली है दुनिया
ये हाल है यहाँ, आदमी को आदमी मारे ।
भूख हड़ताल के असली मा'ने बताएगा वह तुम्हें
हर रोज़ एक वक़्त खाकर जो ज़िंदगी गुजारे ।
दूसरों के लिए कुछ और, खुद के लिए कुछ और
क्यों है ऐसा ' विर्क ', ये कैसे उसूल हमारे ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संग्रह - हिन्द की ग़ज़लें
संपादक - देवेन्द्र नारायण दास
प्रकाशन - मांडवी प्रकाशन, गाज़ियाबाद
प्रकाशन वर्ष - 2008
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