शनिवार, जनवरी 24, 2015

ऋतुराज बसन्त

सजी दुल्हन-सी धरा, फूलों का श्रृंगार है
भँवरे गुनगुनाने लगे, आई बहार है ।

हर पल मुस्करा रहा
नया तराना गा रहा
जीवन बेल पर देख
ये खुशियाँ सजा रहा
झूम उठा है तन-मन, छाया खुमार है ।

खुशनुमा मौसम हुआ
ज़िन्दगी का लो मजा
साकार हुई लगती
इक खूबसूरत दुआ
नाचो, जश्न मनाओ तुम, मिला उपहार है ।

 संदेश ऋतुराज का
विर्क सुना रही धरा
उठा ले कलम अपनी
इसको तू भी फैला
दिल से दिल तक फैला, प्यार ही प्यार है ।

दिलबाग विर्क
*****

2 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

ऋतुराज बसन्त के सुआगमन का सुन्दर चित्रण ...
हार्दिक शुभकामना!

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति वसंत पंचमी

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