जब तक रहेंगी नफ़रतें इस जहां में
लुटती रहेंगी लोगों की मुहब्बतें ।
इंसां को न वो पूछते हैं, न हम
बस सब कुछ होती जा रही सरहदें ।
न छटा अगर साया स्याह रात का
कैसे सजेंगी खुशियों भरी महफ़िलें ।
मातम मनाते हैं मगर करते कुछ नहीं
यूँ तो न लेगा कभी बुरा वक्त करवटें ।
कभी तुम दिल की सिलवटें भी निकालना
निकालते हो रोज, कपड़ों की सिलवटें ।
छोटी हों या बड़ी ' विर्क ' कुछ फर्क नहीं
अक्सर अधूरी ही रह जाती हैं हसरतें ।
दिलबाग विर्क
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काव्य संकलन - साधना सार्थक रहेगी
संपादक - जय सिंह अलवरी
प्रकाशन - राहुल प्रकाशन, सिरगुप्पा
वर्ष - 2008
4 टिप्पणियां:
कभी तुम दिल की सिलवटें भी निकालना
निकालते हो रोज, कपड़ों की सिलवटें ।
बहुत खूब।
bahut sundar gajal dilbag ji hardik badhai
बेहतरीन गजल
सरहदें जमीन को तो बांट सकती हैं। पर दिलों में बहतीं भावनाओं को नहीं।
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